असम के बागान में क्या कर रही रतनपुर की लक्ष्मी सुनिए भूपेन हजारिका के स्वर में …

‘एक कली दो पत्तियां, नाजुक नाजुक उंगलियां, तोड़ रही हैं कौन ये, एक कली दो पत्तियां रतनपुर बागीचे में…’ कौन भूल पाया है भारतरत्न भूपेन हजारिका के इस गीत को। आज भी कहीं जब यह गीत गूंजता है, तो उनके मधुर स्वर के साथ हमारा मन मीलों दूर पूर्वोत्तर के चाय के बागानों में चला जाता है। यह गीत गाते समय भूपेन दा ने शायद ही सोचा होगा कि एक समय आएगा, जब ‘रतनपुर’ बगीचे की पत्तियों पर ग्लोबल वार्मिंग का असर पड़ेगा और उसका खास स्वाद भी बदल जाएगा। लेकिन यह सत्य है, असम के चाय बागानों पर ग्लोबल वार्मिंग का बुरा असर देखने को मिल रहा है।
चाय की कीमतें 15 से 20 प्रतिशत तक गिर गई हैं। 2023-24 के मौसम में असम का चाय उत्पादन 369.9 लाख किलोग्राम कम हुआ। असम में करीब 1,200 बड़े चाय के बागान हैं। इस राज्य में देश के चाय उत्पादन का लगभग 52 प्रतिशत और विश्व के चाय उत्पादन के करीब 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है।  ‘रतनपुर’ बागीचे पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। अब असम सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती चाय के स्वाद और गुणवत्ता को बनाए रखने की है।
….. एन. अर्जुन का यह पूरा लेख दैनिक नवभारत बिलासपुर के संपादकीय पृष्ठ लोकप्रिय ‘दूसरा पहलू’ कालम पर दिनांक 13 दिसंबर के अंक में पढ़े।

https://youtu.be/vCdwI8wKIQ0?si=wLMs1TV5CiCNa6bw

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