देती थी भरपूर उत्पादन,  क्षमता थी जल भराव में बचने की

सतीश अग्रवाल

बिलासपुर। क्रांति, चेपटी, लुचई और गुरमटिया। था  स्वादिष्ट। देती थी प्रति एकड़ भरपूर उत्पादन। सबसे महत्वपूर्ण यह कि मोटा धान की इन चारों प्रजातियों में अति वृष्टि और जल भराव के बाद भी खुद को बचा ले जाने की अद्भुत क्षमता थी। अब यादों में रह गई हैं यह चारों प्रजातियां।

मानसून के दिनों में असीमित बारिश। झटके से कम होता उत्पादन और तरह-तरह के कीट प्रकोप। यह कुछ ऐसे कारक हैं, जिसने मोटा धान की फसल लेने वाले किसानों को परेशान किया हुआ है। ऐसे समय में अब वह प्रजातियां याद आ रहीं हैं, जिनमें ऐसी प्रतिकूल स्थितियों को सहन करने की गजब की क्षमता थी। महत्वपूर्ण यह कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उत्पादन में विशेष अंतर नहीं आता था।

ऐसा था क्रांति,चेपटी और गुरमटिया

दाना मोटा और वजनदार होता था। चावल के रूप में नियमित सेवन किया जाता था ही, साथ ही पोहा-मुरमुरा के साथ लाई भी बनाई जाती थी। यही वजह थी कि यह देसी प्रजातियां, प्रदेश के हर हिस्से में बोई जातीं थीं। लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य प्राथमिकता के आधार पर इन प्रजातियों की उपज की खरीदी करते थे।

अद्भुत था यह गुण

मानसून के दिनों में अतिवृष्टि या परिपक्वता अवधि पूरी कर लेने के दौरान बारिश और खेतों में जल भराव। ऐसी स्थिति में भी किसान बेफिक्र होते थे क्योंकि यह प्रजाति अति वृष्टि या जल भराव जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुद को बचा लेने में सक्षम थीं। उत्पादन का मानक स्तर बना रहता था। गुणवत्ता भी बरकरार रहती थी।

इसलिए खेतों से बाहर

कमजोर तना, मानक से ज्यादा ऊंचाई। तेज हवा के प्रति असहनशीलता ही विदाई का कारण बनी, तो गंगई जैसे घातक कीटों का प्रवेश भी इन देसी प्रजातियों की बोनी से किनारा करने के लिए किसानों को मजबूर किया। यह चारों आज इसलिए याद की जा रहीं हैं क्योंकि बीते सप्ताह हुई बारिश ने तैयार फसल को बेतरह नुकसान पहुंचाया है।

विशिष्ट थीं यह प्रजातियां

क्रांति, चेपटी, गुरमटिया और लुचई। यह चारों प्रजातियां भरपूर उत्पादन देती थीं। जल भराव जैसी प्रतिकूल स्थितियों में भी उत्पादन पर असर नहीं होता था लेकिन ऊंचाई ज्यादा होने और   हवा के प्रति असहनशीलता और गंगई जैसे कीट के हर बरस प्रकोप की वजह से किसानों ने इससे दूरी बना ली।
– डॉ. एस.आर. पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर