शिवपालगंज ग्राम-सभा में सनीचर का व्याख्यान
दिनेश चौधरी
लॉन्ड्री वाले ने कहा कि कुर्ता-पाजामा अभी ठीक से सूखा नहीं है और नाड़ा भी कहीं गुम हो गया है। ‘कोई बात नहीं’ कहकर सनीचर ने कपड़ों की गठरी जैसी बना ली और एक हाथ में भींचकर फौजियों की तरह लेफ्ट -राइट करने लगा। अंडरवियर में उसकी मतवाली चाल देखकर दो गंजहे ठिठक गये और आपस में कुछ कानाफूसी कर जोर-जोर से हँसने लगे। बदले में सनीचर ने उनके परिवार की महिलाओं से आत्मीय सबन्ध बनाने वाले कुछ वाक्यांश कहे और अब वे सब मिलकर हँसने लगे। शिवपालगंज में पारस्परिक अभिवादन का यह बड़ा ही प्रचलित और लोकप्रिय तरीका था। सनीचर ने अब अपनी गति और बढ़ा ली थी, क्योंकि गयादीन के यहाँ होने वाले सालाना भंडारे से देसी घी में छन रहे गुलाब जामुन की खुशबू नाक में प्रवेश करने लगी थी। रंगनाथ, रुप्पन बाबू, बद्री और छोटे वगैरह वहाँ पहले से मौजूद थे। छोटे के साथ कुछ पहलवाननुमा और भी नवयुवक थे, जिसमें से एक पर बद्री भैया की विशेष कृपा थी और वे उसे आग्रहपूर्वक अपने हाथों से गुलाब जामुन खिला रहे थे।
सनीचर को देखकर लँगड़ ने उसे वैसे ही पांयलागी ठोका, जैसे सनीचर बैद महाराज से मुखातिब होता था। सनीचर ने उसे वैसे ही आशीर्वाद दिया जैसे बैद महाराज उसे देते थे। प्रधान बनने के बाद से वह बैद महाराज को लगातार ऑब्जर्व करता रहता था और एक बार धोती पहनने की असफल कोशिश करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। सनीचर ने बड़े आदमियों जैसा बड़प्पन दिखाते हुए लँगड़ से पूछा, “और भाई लँगड़, नकल की कॉपी डाउनलोड हो गयी?” एक पल को लँगड का चेहरा उतर गया पर उसने बड़े गर्व के साथ कहा, “सर्वर डाउन चल रहा है।” गर्व का कारण उसकी निजी शब्दावली में अंग्रेजी शब्दों का समावेश था। जहालत और कंगाली में अंग्रेजी का आसरा हो जाए तो दीनता भी बड़ी हो जाती है। भूखमरे अगर “वी हैवन्ट टेकेन फ़ूड’ कहें तो इस पर भी गर्व करने का वाजिब कारण बनता है।
सनीचर के हाथों में कुर्ता-पाजामे की गठरी देखकर बद्री पहलवान ने हमेशा की तरह मुँह बिचकाया, छोटे की ओर कोई गुप्त इशारा किया, एक वजनदार गाली दी और फिर जोर-जोर हँसने लगे। उन्हें हँसते देखकर बाकी लोग भी हँसने लगे और बाकियों के फेर में सनीचर को भी हँसी आ गयी। इस प्रक्रिया में गर्म गुलाब जामुन का एक बड़ा टुकड़ा सनीचर के मुँह और नाक के संधि-द्वार में फंस गया और वह बेतरह खाँसने लगा। बद्री एकदम से छिटककर यह कहते हुए उससे दूर खिसक गये कि “कुत्ते को घी हजम नहीं होता!” सम्मान के इन छह शब्दों से सनीचर के गुलाब जामुन भकोसने की गति में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई। सनीचर की खासियत यह थी कि उसने अपमानित होना नहीं सीखा था और यह कौशल उसने इस विश्वास और श्रद्धा के बूते अर्जित किया था कि इंसान अगर कुत्ता भी हो तो बैद महाराज की ड्योढ़ी का हो वरना न हो।
प्रधान होने के नाते सनीचर पर ग्राम-सभा को सम्बोधित करने की बड़ी जिम्मेदारी थी, पर यह काम उसकी औपचारिक वेशभूषा में नहीं हो सकता था। इसलिए वह कपड़ों की गठरी उठा लाया था, पर नाड़े का यक्ष-प्रश्न सामने था। याद आया कि बाबू रंगनाथ के मंगाए एक बंडल से बची सामग्री को उसने कपड़े सुखाने की रस्सी के बतौर टांग रखा है। उसने वहीं से एक टुकड़ा काटा और उसे बाबू रंगनाथ द्वारा कहे गए एक दोहे ही याद हो आई, जिसमें वे बाबा कबीर के हवाले से मटकी के फूटने से पानी के पानी मे मिल जाने की बात कहते हैं। नाड़े की रस्सी आखिर नाड़े के ही काम आयी!
थोड़ी गीली होने के बावजूद उसने कुर्ते-पाजामे की जोड़ी को आजमा कर देखा और अपने तमाम भदेसपन के बावजूद यह समझने में देर नहीं लगाई कि वह किसी जोकर से कम नहीं लग रहा है। उसने खुद को तसल्ली दी कि जोकर होना प्रधान होने की अनिवार्य अर्हता है। फिर उसने भाषण देने की प्रैक्टिस की और तमाम मूर्खता के बावजूद यह समझने में देर नहीं लगाई कि भाषण के नाम पर वह महज उल-जुलूल बकने में लगा हुआ है। उसने फिर से खुद को तसल्ली दी कि भाषण के नाम पर उल-जलूल बकने का ही रिवाज है। शिवपालगंज में इसकी बड़ी समृद्ध परंपरा रही है, जो वहाँ के वक्ताओं में गहरे आत्मविश्वास के बूते आगे बढ़ती आई है और जिसके बारे में परसाई बाबा कह गए थे कि यह मूर्खता से उपजता है। ये बात और है कि परसाई बाबा को पढ़ना तो दूर सनीचर ने उनका नाम तक नहीं सुना था, पर मूर्खता और मूर्खता वाले आत्मविश्वास पर उसका कॉपीराइट एक्सक्लूसिव था।
सनीचर बद्री पहलवान को अपने आयोजन का चीफ-गेस्ट बनाना चाहता था, पर बद्री पहलवान पहले से अपने ही आयोजन में व्यस्त थे। बद्री भैया के अखाड़े में ‘इंटर डिस्ट्रिक्ट रेसलिंग चैंपियनशिप’ चल रही थी। आयोजन को सेठ गयादीन की स्पॉन्सरशिप मिली हुई थी। बद्री चाहते तो अपने बूते पर भी आयोजन कर सकते थे पर इस बहाने उन्हें सेठ गयादीन के यहाँ जाने का मौका मिल जाता था और वे बेला पर एक नज़र मार लेते थे। प्रतियोगिता में पिछले तीन सालों से मेजबान टीम का कब्जा था और छोटे ही लगातार जीतते चले आ रहे थे। इस बार थोड़ी चिंता इसलिए थी कि महिपालपुर का एक लड़का आस-पास के अखाड़ों में धूम मचाए हुए था और लोगों के बीच में यह चर्चा आम थी कि छोटे की नैया अबकी दफा डूबने वाली है। यह वही लड़का था जिसे भंडारे में बद्री पहलवान आग्रहपूर्वक गुलाब जामुन खिला रहे थे और फिर उसे ठंडाई के सेवन के लिए भी आमंत्रित कर लिया गया। बद्री भैया के कहने पर सनीचर ने लड़के के ग्लास में ढेर सारे मुनक्के- बादाम पीसकर ठेल दिए थे और वह प्रतियोगिता से ठीक पहले दो छटाक वजन बढ़ने के कारण डिस्क्वालिफाई हो गया। इस ऐतिहासिक घटना को समकालीन मशहूर शायर रामाधीन भीखमखेड़वी ने इन शब्दों में दर्ज किया –
मर जाते इक तिरे तीरे-नज़र से
तुमने पेंच-ओ -प्रपंच पचासी चल दिये
क्या करिश्मा ऐ रामाधीन भीखमखेड़वी
मैदाने- इश्क़ में दाँव-सियासी चल दिये
मुख्य- अतिथि के रूप में बद्री पहलवान के इनकार से सनीचर को कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि शिवपालगंज में मुख्य-अतिथियों के योग्य उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं थी। कुछ तो प्रोफेशनल मुख्य-अतिथि थे और उनके कंधों का झोला कई बार खूँटी तक पहुँच भी नहीं पाता था कि अगले आयोजन का बुलावा पहुँच जाता। ऐसे मौकों पर वे आयोजक को बुके वगैरह में पैसे खर्च करने की औपचारिकता से मना कर देते थे और पुराने को ही मेज के पीछे से सरका देते। सनीचर अपने आयोजन में पेशेवर के बदले किसी शौकिया मुख्य-अतिथि को बुलाना चाहता था पर घूम-फिरकर उसकी निगाह बाबू रंगनाथ फिर टिक गई, जो दोनों ही श्रेणियों में नहीं आते थे और आसानी से उपलब्ध थे। प्रोग्राम की सदारत प्रिंसिपल साहब द्वारा कराना तय पाया गया।
प्रिंसिपल साहब की सदारत का एक फायदा यह भी था कि वे छंगामल इंटर कॉलेज के होनहार छात्रों को श्रोता के रूप में ग्राम-सभा के मैदान में, यानी मौका-ए-वारदात पर पकड़ लाये थे। लड़कों को जुआ खेलने के लिए पास के खेत वाले उजड़े दयार में जाने की कोई हड़बड़ी नहीं थी क्योंकि यह काम वे समोसा-जलेबी खाने के बाद भी कर सकते थे। आयोजन का मुख्य आकर्षण यही था। बतौर मुख्य-अतिथि रंगनाथ ने अपने भाषण में जो कहा, वो बातें सबको पहले से पता थीं और वे कभी भी, किसी के भी द्वारा किसी और को बताई जा सकती थीं। पीछे की कतार में कॉलेज का एक लड़का रंगनाथ के भाषण की लाइव मिमिक्री करता रहा और बाकी खों-खों कर हँसते रहे। शिवपालगंज में किसी के भाषण की हूटिंग न हो, यही बड़ी बात होती है। जो बातें ग्राम-प्रधान होने की हैसियत से सनीचर ने कही, वो क्या थी, यह खुद सनीचर को भी पता नहीं था पर कहते हैं कि उसका भाषण बहुत जोरदार रहा।
अगले दिन ‘शिवपालगंज टाइम्स’ में सनीचर के भाषण की खबर उसके फोटो के साथ पाँच कॉलम की पट्टी में लगी थी। सनीचर ने छुप-छुपकर कई बार कई एंगल से खुद को देखा और अखबार के जरिए यह समझने की असफल कोशिश करने लगा कि कल उसने कहा क्या था? उसे बस यही समझ में आया कि उसका भाषण धुआँधार था। अखबार को बगल में दबाकर वह प्रशंसा पाने की गरज से बद्री पहलवान के सम्मुख पहुँचा। बद्री भैया को रंगनाथ के हवाले से सारी खबर पहले ही मिल गयी थी।
बद्री पहलवान अखाड़े जाने के लिए अपनी लँगोट कस रहे थे। लँगोट उत्तर-आधुनिक काल की नायिकाओं की तरह तंग थी, पर उनका सीना उस मध्ययुगीन योद्धा की तरह गर्व से खुला हुआ था, जो जिरह-बख्तर से लैस होकर मैदाने-जंग में जाने की तैयारी कर रहा हो। कुल मिलाकर वर्तमान के इस विस्फोटक क्षण में उनको छेड़ना खतरे से खाली नहीं था, जब सनीचर सामने पड़ गया। उन्होंने एक उड़ती हुई-सी नज़र सनीचर पर डाली और बर्फ से भी सर्द आवाज और संग से भी सख्त लहजे में कहा, “मुफ़्त का माल मिले तो जी भरकर नहीं फूंकना चाहिए, इससे दिमाग और फेफड़े दोनों खराब होते हैं।”