सरकारी अस्पतालों की नाकामी से हालात बिगड़ी


दवा की मौत पर फौरी कार्रवाई, इन पर कलेक्टर मौन ?


बिलासपुर।  दावा कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में सायं सायं काम हो रहा, वहीं बिलासपुर जिले के सिर्फ कोटा ब्लॉक में ही एक महीने में कथित मलेरिया और सरकारी अस्पतालों में इलाज नहीं होने और छोला छाप के इलाज से सात लोगों की मौत हो गई। इनमें पांच आदिवासी और दो अल्पसंख्यक हैं। सरकारी अस्पताल में अस्थमा की दवा की मौत पर फौरी जवाबदारी तय कर फार्मासिस्ट और सेक्टर सुपरवाइजर को निलंबित करने और ग्रामीण चिकित्सा सहायक का एक एक्रीमेंट रोकने की कार्रवाई करने वाला कलेक्टर अब आदिवासियों की मौत पर मौन क्यों हैं…!
बीते दो महीना पहले इसी साल जून के दूसरे सप्ताह में कलेक्टर  अविनाश शरण बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक शिवतराई में पीएम जनमन योजना की समीक्षा की। समीक्षा बैठक  के बाद मैदानी हालात का जायजा लेने ग्राम पंचायत करगीकला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुँचे। जहां दवा वितरण कक्ष में कालातीत दवाएं मिलने पर फार्मासिस्ट मुकेश पोर्ते और सेक्टर सुपरवाइजर को निलंबित करने और ग्रामीण चिकित्सा सहायक का एक एक्रीमेंट रोकने के निर्देश दिए थे। अस्पताल में कलेक्टर को प्रभारी चिकित्सा अधिकारी मिले की नहीं इसकी जानकारी तो प्रकाशित खबरों में तो बिलकुल नहीं मिली. आक्रामक दिखे साहब…!, तुरंत लापरवाही की जिम्मेदार तय हो गई। तृतीय वर्ग के दो स्वास्थ्य कर्मी निलंबित, एक आरएमए का एक एक्रीमेंट रोकने के निर्देश । वाह … ऐसे ही गुस्से से ही तो अनुशासन दिखता है। जिसे सिस्टम से सताए लोग भी  महसूस करते हैं।

           अब दूसरी तस्वीर, जिस कोटा ब्लॉक में में जिले के कलेक्टर अवनीश शरण ने समीक्षा बैठक की थी ठीक एक महीना बाद उसी कोटा  ब्लॉक के वनांचल में कथित रुप से मलेरिया पीड़ित पांच बच्चों की मौत हो गई । इनमें से तीन बच्चें तो अनुसूचित जनजाति वर्ग और दो  अल्पसंख्यक थे। आमागोहन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र क्षेत्र के ग्राम टेंगनमाड़ा निवासी दो बच्चे कथित रुप से मलेरिया पीड़ित थे। इनमें से एक बच्चे ने गांव में ही दम तोड़ दिया।  वहीं एक को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोटा में भर्ती कराया गया था। जहां दूसरे बच्चे की भी मौत हो गई । पहले इनका इलाज झोलाछाप डॉक्टर से  ही कराए जाने की बात सामने आई थी। जुलाई महीने में घटित इस घटना के और मलेरिया से मौतें होने की प्रसारित (अधिकारिक नहीं) खबरों के बाद कलेक्टर अवनीश शरण ने प्रभावित वनांचल के गांवों का अवलोकन किया। ऐसे गांव जहां साहब के चार पहिया वाहन नहीं पहुँच सके। उन गांवों तक बाइक में सवार होकर कलेक्टर शरण पहुंचे। इसकी भी खबर और फोटो मुख्य धारा के अखबारों में प्रकाशित होकर जिले के कोने कोने तक पहुँची। कलेक्टर की बाइक सवारी के कौतूहल उस तस्वीर के साथ कोटा  ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेलगहना, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शिवतराई, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सलका नवागांव,  स्वास्थ्य केंद्र टेंगनमाड़ा, स्वास्थ्य केंद्र केंदा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चपोरा,  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पोड़ी, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र करगीकला, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र शिवतराई और इस इलाकों के वेलनेश सेंटर व उप स्वास्थ केंद्रों जिसे अब की सरकार ने आयुष्मान आरोग्य मंदिर नाम दिया है में स्वीकृत पद और उन पर पदस्थ डाक्टरों के नामों सूची ही प्रकाशित कर देती तो शायद जिम्मेदारों को कुछ शर्म आ जाती। सनद रहे कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को 24 घंटे सातो दिन लगातार सेवाएं देनी हैं। जितने हैं उतने में ये कैसे संभव हो पा रहा है ये आठवें आश्चर्य से  कम नहीं, और यही पूरी सिस्टम के  अव्यवस्था का कारण है।


मलेरिया, जिसकी रोकथाम के  लिए भारत और छत्तीसगढ़ सरकार करोड़ों रुपए बहा रही है, से कथित दो बच्चों की मौत के बाद “व्यथित” कलेक्टर अपने एयर कंडिशनर कार की सवारी छोड़ फटफटी पर सवार होकर जंगल में वनवासियों की सुध ली, तो लगा कि कुछ अच्छा होगा। सिस्टम जागा, फील्ड पर नहीं दस्तावेज में , सब अपडेट हो गए। कहां कहां कितनी जांच और मरीज हैं । कागजों में आंकड़े जारी होने लगे। अस्थमा के दवा की मौत पर जहां फौरी जिम्मेदारी तय कर दी गई। वहीं बच्चों का उनके घर के करीब के  सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होने या फिर करा पाने में नाकाम दो अबोध बच्चों की मौतौं के लिए जिम्मेदारी अब साहब फौरी तौर पर तय नहीं कर पाए। किसी का  निलंबन नहीं, एक्रीमेंट रोकने के निर्देश नहीं दिए गए। दो बच्चों की मौत के बाद वनांचल के इन गांवों में मलेरिया की जांच होने लगी। अधिकारिक आंकड़ों में ही बीते एक महीने में डेढ़ सौ से  अधिक ग्रामीण मलेरिया से पीड़ित हो चुके हैं। इन कवायदों के  बीच सिलपहरी मचगवां के कारीमाटी गांव में अनुसूचित जनजाति वर्ग के एक ही घर के दो चिराग कथित मलेरिया से ही बुझ गए. अभी पांच दिन पहले बेलगहना के पास करही कछार में अनुसूचित जनजाति  के ही नौ वर्षीय बच्चे की मौत इलाज के अभाव में कथित मलेरिया से ही हो गई ।

वहीं बुधवार को रतनपुर से लगे ग्राम कलमीटार में झोलाछाप के इलाज से अनुसूचित जनजाति की महिला और ग्राम पंचायत खैरा में बीती रात में अधेड़ की मौत हो गई । छत्तीसगढ़ की सत्ता आदिवासी मुख्यमंत्री के हाथ में है। सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश में सभी काम सायं सायं हो रहे हैं। तब फिर आदिवासी मुख्यमंत्री के राज में सरकार अस्पतालों की बदइंतजामी से कथित मलेरिया, डायरिया और झोला छाप लोगों के इलाज से एक महीने में ही सिर्फ एक ब्लॉक कोटा में सात लोगों की मौत हो जाएं और उनमें पांच आदिवासी। सरकारी अस्पतालों के निकम्मेपन और इलाज के अभाव में हुई मौतों के लिए कोई जिम्मेदार नहीं ?