जल भराव वाले क्षेत्रों को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह

बिलासपुर। अतिवृष्टि। डूब प्रभावित क्षेत्र के किसानों को रखनी होगी दोबारा बोनी की तैयारी। लेई या रोपाई विधि से की जा सकने वाली यह तैयारी बोनी का खर्च तो बढ़ाएगी लेकिन समय अभी भी है।

मानसून की सक्रियता अब किसानों की चिंता की वजह बनने लगी है क्योंकि कहीं जलाशय क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, तो कहीं केचमेंट एरिया से बहाव का दबाव, सांसत में डाले हुए हैं। यह स्थिति खेतों में जल भराव को बढ़ा चुकी है। अब खेत खाली होने की प्रतीक्षा हैं, तब ही नुकसान का वास्तविक आकलन किया जा सकेगा।


तैयारी रखें दोबारा बोनी की

समय हाथ में है। जल भराव वाले क्षेत्र के किसानों को लेई अथवा रोपाई विधि अपनाने की तैयारी रखनी होगी। बादल, बारिश और जल जमाव की स्थिति पर नजर रख रहे कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि दोनों विधियां सुविधा के अनुसार अपनाई जा सकती हैं। प्रतीक्षा करें खेतों के खाली होने का, तब ही सही तस्वीर सामने आएगी।


यह सतर्कता अहम

दोबारा बोनी जैसी स्थितियों में किसानों को बीज और प्रजाति चयन में सतर्कता रखनी होगी। ऐसी प्रजातियों का चयन करना होगा, जो प्रतिकूल मौसम में भी बेहतर परिणाम देती हैं। यह सतर्कता असिंचित क्षेत्र के किसानों को ज्यादा बरतनी होगी। सिंचित क्षेत्र के प्रभावित किसान के लिए ज्यादा चिंता की बात तो नहीं लेकिन सावधानी उन्हें भी रखनी होगी।


तैयार है बाजार

बारिश की स्थिति पर बीज बाजार भी नजर रखे हुए हैं। प्रभावित किसानों की मांग निकलते ही सभी प्रजातियों के बीज की उपलब्धता तय कर चुका है बाजार। संभावित मांग के मद्देनज़र, जल्द तैयार होने वाली प्रजातियों के बीज के लिए कंपनियों को अग्रिम सूचना भेजी जा रही है ताकि समय पर बीज किसानों को दिया जा सके।


दोनों विधि उपयुक्त
प्रतिकूल स्थितियों को देखते हुए किसान लेई और रोपाई विधि अपना सकते हैं। नुकसान जैसी स्थिति नहीं है। समय अभी भी है।
– डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट, एग्रोनॉमी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर