पौधरोपण में सबसे पीछे



बिलासपुर। बीज का मानक आकार छोटा। यह नया बदलाव उस नीम में देखा जा रहा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने ” 21वीं सदी का वृक्ष” घोषित किया हुआ है। लिहाजा अब कारणों की तह में जाने के लिए गंभीर प्रयास की योजना बनाई जा रही है।

महुआ के बाद अब नीम का नाम सामने आ रहा है जिसके वृक्षों की आबादी तेजी से कम हो रही है। प्रारंभिक खोज में जो कारण सामने आए हैं उसमें इस प्रजाति के पौधों के रोपण को लेकर अनिच्छा को प्रमुख वजह माना जा रहा है। इसके अलावा जो वृक्ष बचे हुए हैं, उनके संरक्षण व संवर्धन को लेकर लापरवाही, दूसरी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है।

इसलिए सदी का वृक्ष

हर अंग का अपना औषधीय महत्व है। इसलिए नीम को बहुमूल्य वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। जल-थल-नभ के लिए भी नीम की मौजूदगी इसलिए अहम मानी गई है क्योंकि पर्यावरण को नियंत्रण में रखता है यह वृक्ष। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र ने इसे ’21वीं सदी का वृक्ष’ घोषित किया हुआ है।

आ रहा यह बदलाव

बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र को लेकर जब नीम पर अनुसंधान किया गया, तो वानिकी वैज्ञानिक यह देखकर हैरत में पड़ गए कि नीम के बीज का आकार, मानक आकार से छोटा है। तेल प्रतिशत का आकलन तो, और भी चौंकाने वाला रहा क्योंकि इसमें भी भारी कमी देखी गई। हद तो यह कि फलोत्पादन की सालाना मात्रा भी कम निकली।

केवल यहां प्राकृतिक जंगल

पसान, जटगा, मरवाही, गरियाबंद और मैनपुर का इलाका ऐसा है, जहां नीम के प्राकृतिक जंगल हैं। लेकिन आबादी यहां भी तेजी से कम होती नजर आ रही है। नए जंगल तैयार करने की जो योजनाएं हैं, उनमें नीम को वह जगह नहीं मिल रही है, जिसका वह हकदार है। हद तो तब, जब बिगड़े वनों के सुधार से भी इस प्रजाति को दूर रखा गया है।

व्यापक असर यहां

नीम लेपित यूरिया उत्पादन करने वाली ईकाइयां, नीम तेल की सबसे बड़ी खरीददार हैं। कीटनाशक दवाई बनाने वाली कंपनियां भी भरपूर मात्रा में बीज की खरीदी करती हैं। पशु आहार बनाने वाले कारखानें भी पूरे साल खरीदते है नीम के बीज। नया बदलाव इन सभी के लिए गंभीर संकट लेकर आने वाला है। सबसे ज्यादा चिंता में वह किसान है, जिसे लगभग हर रोज इसकी जरूरत होती है।

आर्थिक आत्मनिर्भरता नीम से ही संभव

नीम भारतीय मूल का एक पर्णपाती वृक्ष है जो सूखे के प्रतिरोध के लिए प्रसिद्ध है। भारत में नीम का उपयोग एक औषधि के रूप में किया जाता है। नीम के पेड़ का हर अंग फायदेमंद होता है। व्यवसायिक रूप से सुलभ कीटनाशकों और उर्वरकों के साथ सह- संबद्ध होने पर नीम आधारित वस्तुएं अद्भुत होती है साथ ही नीम आधारित कृषि वानिकी अपनाकर पारंपरिक खेती की तुलना में किसान अधिक मुनाफा प्राप्त कर आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है। इतने महत्व का होने के बावजूद नीम के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर