विलुप्त हो रहीं प्रजातियों में अब इसका भी नाम
सतीश अग्रवाल
बिलासपुर। नाम भले ही विजयसार हो लेकिन बढ़ती मानव आबादी से यह पराजय की स्थिति में आ चुका है। बड़ा सवाल यह है कि प्रयास जैसे शब्द इसके हिस्से में क्यों नहीं आ रहे हैं ? यह इसलिए क्योंकि यह प्रजाति भी विलुप्ति की कगार पर है।
तेजी से विलुप्त होने वाले वृक्षों की प्रजाति में विजयसार का नाम भी लिखा जा चुका है। हर साल पौधरोपण होते हैं लेकिन विजयसार को महत्व कम ही मिलता है। भरपूर हरियाली और भरपूर ऑक्सीजन देने वाले विजयसार में कई ऐसे औषधीय तत्वों की मौजूदगी होने का खुलासा हुआ है, जिनकी मदद से असाध्य बीमारियों का प्रभाव कम किया जा सकता है। यही वजह है कि आयुर्वेदिक औषधि बनाने वाली इकाईयां फूल, फल, पत्तियां और छाल की खरीदी कर रहीं हैं।

मिले यह मेडिशनल प्रॉपर्टीज
पत्तियां, फूल, फल, छाल और जड़़। इनमें एंटी एनाल्जेसिक, एंटी बैक्टीरियल, एंटी कैंसर, एंटी कैटरेक्ट, एंटी डायबिटीक, एंटी फंगल, एंटी ऑक्सीडेंट, हेपेटोप्रोटेक्टिव जैसे गुणों का होना पाया गया है। सेवन से असाध्य बीमारियों का प्रभाव कम होता है और नियंत्रण में रखी जा सकतीं हैं यह सभी बीमारियां। यही वजह है कि औषधि निर्माता इकाइयां इसकी खरीदी कर रहीं हैं।

मांग रहा संरक्षण और संवर्धन
कर्नाटक, केरल, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार और उड़ीसा के अलावा विजयसार के वृक्ष अपने छत्तीसगढ़ में भी मिलते हैं लेकिन बढ़ती मानव आबादी से यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है। पौधरोपण की योजना में नाम इसका भी है लेकिन रोपण में इसे वह जगह नहीं मिलती, जितनी होनी चाहिए।

बनते हैं बर्तन
लकड़ियों से फर्नीचर तो बनते ही हैं लेकिन बदलते परिवेश में इसकी लकड़ियों से अब बर्तन भी बनाए जाने लगें हैं। इसमें गिलास की मांग सबसे ज्यादा है क्योंकि इसमें भरा पानी सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। अन्य सामग्रियों में चम्मच और प्लेट प्रमुख हैं।

जानिए विजयसार को
मालाबार ट्री, कीनो ट्री, बीजा जैसे नाम से पहचानी जाने वाली इस प्रजाति के वृक्ष 30 मीटर ऊंचे और 2.5 मीटर मोटे होते हैं। छाल भूरा और गहरा भूरा रंग का होता है। जड़े गहराई तक जाने वाली होती हैं। छाल पर चोट करने से गाढ़ा लाल रंग का स्राव होता है, जिसे गोंद के रूप में जाना जाता है। मार्च के महीने में इसमें फूल और फल लगते हैं।

औषधीय गुणों से भरपूर
औषधि गुणों से भरपूर बीजासाल अर्थात विजयसार जिसका वानस्पतिक नाम “टेरोकार्पस मारसूपियम” है, बेशकीमती वृक्ष प्रजातियों में से एक है । किंतु संरक्षण एवं संवर्धन के अभाव में छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक वनों से वृक्ष की प्रजाति विलुप्ति की ओर है।
अजीत विलियम्स,
साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर