तेज धूप और भीषण गर्मी में परेशान हो रहे किसान

भाटापारा। दो नहीं, अब चार दिवस में काम हो पा रहा है कृषि उपज मंडी में। ताजा परिस्थितियों में जल्द से जल्द काम निपटाना चाहते हैं, तो खर्च की रकम दोगुनी करनी होगी।

चौथा दिन भी कृषि उपज मंडी पहुंचे किसानों के लिए बेहद भारी गुजरा। बंपर आवक के बीच की घिसट-घिसट कर होता रहा काम। चिंता तो है मंडी प्रशासन को लेकिन गंभीरता नजर नहीं आ रही है। सफाई देने वाले शब्द अब बदलने लगे हैं। बचाव में यह कहा जा रहा है कि “रबी फसल की आवक के दिन हैं। ऊपर से भीषण गर्मी का प्रकोप है। इसलिए काम में वह गति नहीं आ रही है जो होना चाहिए”।इस बरस भी

इस बरस भी

नीलाम के बाद कृषि उपज का, बारदानों में भरा जाना सबसे अहम काम है। यह जब तक पूरा नहीं होगा तब तक, ना तौलाई होगी, ना सिलाई। प्रांगण का शीघ्रता से खाली होना, इस काम पर निर्भर करता है कि भराई के काम में कितने श्रमिक लगे हुए हैं ? अव्यवस्था की पूरी चेन में यही एक ऐसी कड़ी है, जो बेहद कमजोर है। इस काम के लिए श्रम बल बढ़ाने की मांग फिर से उठ रही है। सदाबहार जवाब “गंभीरता के साथ प्रयास कर रहें हैं”।

अर्थ और समय हो रहा बर्बाद

पैक है प्रांगण। पहला दिन प्रवेश। दूसरा दिन जगह की तलाश। तीसरे दिन नीलाम। किस्मत वाला होगा वह किसान, जिसने इस तीसरे दिन कामकाज निपटा लिया। अन्यथा चौथे दिन ही उसे मुक्ति मिल पा रही है। यदि समय बचाने की जल्दबाजी की, तो बहुत संभव है अतिरिक्त रकम देना पड़े। धूप और गर्मी से बचने के लिए अधिकतर किसान ऐसा करने के लिए विवश है।

बढ़ा रहे श्रमिक

बेपटरी हो चुकी व्यवस्था,की बहाली के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत श्रमबल का 175 कर दिया जाना मंडी प्रशासन बता रहा है। लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। संख्या 200 से ज्यादा किये जाने की जरूरत बताई जा रही है क्योंकि रबी फसल की आवक के दिनों के पहले यदि यह गंभीरता नहीं दिखाई, तो हालात नियंत्रण से बाहर जाते देर नहीं होगी।जरूरत पर पूरा ध्यान

जरूरत पर पूरा ध्यान

कृषि उपज की भराई के लिए जरूरत पर पूरा ध्यान है। मजदूरों की संख्या 175 की जा चुकी है। इसमें और अधिक वृद्धि की कोशिश कर रहे हैं।

  • एस एल वर्मा, सचिव, कृषि उपज मंडी, भाटापारा