30,000 कट्टा खुले में निपटान की राह देख रहा
भाटापारा। संभाले नहीं संभाली जा रही व्यवस्था। परिणाम, चौतरफा जाम। जी हां, यह उस कृषि उपज मंडी का हाल है, जो खुश हो रहा था मजदूरों की हड़ताल खत्म करवा कर। बुधवार की सुबह जो दृश्य शहर ने देखा, उसने यह साबित कर दिया कि स्थाई तो दूर, फौरी राहत के उपाय भी नहीं खोज सकता मंडी प्रशासन।
रबी फसल की आवक शुरू नहीं हुई है। खामियां दूर करनी थी ताकि व्यवस्थित रहे हर काम लेकिन सिरे से यह गायब है। यह इसी बात से जानी जा सकती है कि सोमवार और मंगलवार को हुई आवक के सारे काम पेंडिंग में आ चुके हैं। बुधवार को हुई रिकॉर्ड आवक के बाद यह सब उस वक्त हाथ से बाहर निकलती नजर आई, जब नई आवक के लिए जगह नहीं बनाई जा सकी। प्रबंधन, ‘प्रयास’ जैसे शब्द अब भी दोहरा रहा है लेकिन यह कब सफल हो पाएगा ? जवाब नहीं मिलेंगे।

श्रम की समस्या
मजदूरों की संख्या को जरूरत के समय बढ़ाने की कोशिश कभी होती देखी नहीं गई। ताजा हालात में भी यह बड़ी समस्या बन रही है। सोमवार और मंगलवार को हुई आवक के बाद काम की गति अनुपातिक लिहाज से बढ़ाई नहीं जा सकी। लिहाजा यह बुधवार की सुबह असर चारों कोने तक पसरी नजर आई। अब पसीने छूट रहे हैं क्योंकि बुधवार की आवक रिकॉर्ड तोड़ती नजर आई लेकिन श्रम बल यथावत रहा।

अभी भी देख रहे
समस्या आने पर जैसे शब्द, जिम्मेदारों द्वारा कहे जाते हैं, वह अब भी बोला जा रहा है लेकिन यह कार्य रूप में कब देखा जाएगा ? इसके जवाब नहीं मिलेंगे। पूर्ववर्ती अधिकारियों ने जरूर कोशिश की थी रविवार को काम करवा कर व्यवस्था बनाए रखने की। सफलता भी मिली थी। अब ताजा स्थितियों में इस पर विचार किया गया होगा, देखा नहीं गया क्योंकि शनिवार को हुई हड़ताल के बाद रविवार का पूरा दिन खाली नजर आया।

बुधवार की स्थिति
चौपट हो चुकी व्यवस्था, बुधवार की सुबह उस वक्त हाथ से बाहर जाती हुई नजर आई, जब लगभग दोगुनी से ज्यादा आवक हुई। मंडी सूत्रों के मुताबिक प्रांगण में लगभग 30,000 कट्टा खुले में निपटान की राह देख रहा है। जबकि इतनी ही मात्रा नई आवक के रूप में जगह तलाश कर रही है। अपने- अपने स्तर पर कोशिशें जारी हैं लेकिन जिम्मेदारों ने जैसा मौन साध रखा है, उससे नुकसान सिर्फ किसान का ही हो रहा है।