रावण दहन का आयोजन प्रतीकात्मक

भाटापारा। कोरोना का दूसरा बरस, कम होते संक्रमण के मामले के बाद, भले ही राहत दे रहा हो लेकिन खतरा बना हुआ है। इसलिए इस साल भी रामलीला का मंचन नहीं होगा। विजयादशमी पर रावण दहन का आयोजन भी प्रतीकात्मक करने का फैसला श्री आदर्श रामलीला नाटक मंडली ने लिया है।

100 बरस की उम्र पूरा कर चुकी श्री आदर्श रामलीला नाटक मंडली को दूसरे बरस भी मंचन नहीं करने का फैसला बेहद पीड़ादायक स्थितियों में लेना पड़ रहा है ,लेकिन सुरक्षा पहले स्थान पर है। समिति ने अपने इस फैसले की जानकारी प्रशासन तक पहुंचा दी है। मंडली ही नहीं, शहर के लिए भी यह पीड़ा देने वाली स्थिति है, लेकिन दूसरा विकल्प है नहीं। विकल्प नहीं होने की यह विवशता समझी जा सकती है।


उजला अतीत, धुंधला वर्तमान

1919 में जब श्री आदर्श रामलीला नाटक मंडली की स्थापना की गई थी, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि 100 बरस निर्बाध चलने वाली परंपरा को किसी की नजर लगेगी। कोरोना जैसी महामारी, ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति लेकर आई, जिसने इस निर्बाध गति पर मजबूती से विराम लगाया। 2019 को ही मंडली ने 100 बरस पूरे करने के मौके पर अविस्मरणीय मंचन किया और घर पर ही बैठकर रामलीला देखने की सुविधा उपलब्ध करवाई।


याद आए यह नाम

102 बरस में प्रवेश कर रही श्री आदर्श रामलीला नाटक मंडली भले ही कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए मंचन नहीं करने का फैसला ले चुकी हो, लेकिन स्व. स्वरूप नारायण जोशी, स्व. जगन्नाथ जोशी, स्व. चुन्नीलाल गांधी, स्व. मीठालाल मल, स्व. श्री किशन मल, स्व शिव प्रसाद अग्रवाल, स्व. गप्पू लाल केशरवानी, स्व. छोटे लाल गुप्ता, स्व. भगवान दास वैष्णव, स्व. लटूरिया महाराज, स्व. महादेव त्रिवेदी ,स्व. कन्हैयालाल टोडर फिर से याद किए जा रहे हैं, क्योंकि यही ऐसे लोग थे, जिन्होंने इस आयोजन की नींव रखी थी।


फैसला पीड़ादायक

श्री आदर्श रामलीला नाटक मंडली की व्यवस्था संभाल रहे मुरारी शर्मा की पीड़ा सहज ही समझी जा सकती है। “नहीं कर सकेंगे मंचन” जैसे संक्षिप्त शब्दों के बाद लंबी चुप्पी। खुद को संभालते हुए कहते हैं कि रावण दहन का आयोजन तो होगा, लेकिन वह भी प्रतीकात्मक कर पाएंगे। हमने इसकी जानकारी प्रशासन को दे दी है।