बैडमिंटन, टेबल टेनिस, वॉलीबॉल अब यादों में

भाटापारा खिलाड़ी हैं टेबल टेनिस के लेकिन टेबल नहीं। वॉलीबॉल और बैडमिंटन तो यादों में रह गए हैं। परंपरागत खेल में खो-खो और कबड्डी का तो नाम लेने वाला नहीं। यह पांच खेल पूरी तरह बंद हो चुके हैं।

प्रोत्साहन और जरूरी संसाधन। यह दोनों अहम हैं खेल और खिलाड़ी के लिए। अपने शहर से यह दोनों जिस तेजी से गायब हो रहे हैं, इसकी मिसाल शायद ही कहीं और मिले। बदहाली के अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही खेल गतिविधियां कब तक चल पाएंगी ? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि शासकीय योजनाएं अभी भी खेल मैदान से दूर हैं।

क्लब संचालित यह खेल

खेलों को लेकर जज्बा ही कहें कि निजी स्तर पर क्लब बने हुए हैं। यही वजह है कि नेटबॉल, रोलबॉल, जूडो, कराटे, हैंडबॉल और फुटबॉल जैसी खेल गतिविधियां जारी हैं। ओपन टूर्नामेंट के अवसर पर खिलाड़ी और क्लब आपसी सहयोग से इस स्पर्धा में भाग लेते हैं। प्रशासन के असहयोग का सामना यह खेल और खिलाड़ी भी कर रहे हैं।

यह खेल बंद

नाम था शहर का कबड्डी में। खो-खो जैसे पारंपरिक खेल में शहर का दबदबा होता था। अब ना खेल रहा, ना खिलाड़ी। यह इसलिए क्योंकि जरूरी संसाधन नहीं मिलते। वॉलीबॉल, टेबल टेनिस और बैडमिंटन जैसी खेल गतिविधियां कब बंद हो गई। पता ही नहीं चला। ग्राउंड और जरूरी संसाधन की कमी यहां भी बनी हुई है।

संकट बरकरार

प्रशासन पहले से असहयोगात्मक रुख बनाए हुए हैं।जनप्रतिनिधियों की दिलचस्पी केवल रैली, आम सभा, चुनाव, शिलान्यास और लोकार्पण तक ही है। जैसे-तैसे करके अपने दम पर खेल गतिविधियां जारी रखे हुए हैं, शहर के नवोदित खिलाड़ी।