अगर स्वास्थ्य मंत्री महाराजा साहब के हाथ पूरे प्रदेश की कमान आ जाती तो छत्तीसगढ़ का आलम क्या होता..?



बिलासपुर। माफ करिएगा सरगुजा रियासत के पूर्व महाराजा साहब।।। अब तो ऐसे लगने लगा है कि अच्छा हुआ जो ऊपर वाले ने आपके हाथ में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की बागडोर नहीं सौंपी। अगर ऐसा हुआ होता तो छत्तीसगढ़ की पता नहीं कितनी दुर्दशा हुई होती..? इस प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की फटीचर हालत को देखकर आज इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। चाहे सिम्स हो, जिला चिकित्सालय हो अथवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र। सबका दीवाला निकला हुआ है। कहीं डॉक्टर नहीं है। तो कहीं सीटी स्कैन मशीन बंद पड़ी है। तो कहीं ईसीजी और एक्स रे मशीन कबाड़ होने के नजदीक पहुंच गई है। शहर में महंगे इलाज वाले नर्सिंग होम और एंबुलेंस तथा शव वाहन के कारोबारी फल फूल रहे हैं। और जनता को सस्ता इलाज देने के लिए शुरू किये गये सिम्स जिला अस्पताल जैसे स्वास्थ्य केंद्रों की हालत महाराजा साहब की रहनुमाई में और भी खराब होती जा रही है। सरगुजा के महाराज और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बेशक ईमानदार होंगे सिद्धांत वादी होंगे। खुद्दार और आत्मसंम्मानी होंगे। लेकिन छत्तीसगढ़ी के सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों और उनके परिजनों के लिए किस काम के..? उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए बिलासपुर में सिम्स, जिला अस्पताल और जिले भर के सामुदायिक केंद्रों कि जो दुर्दशा है उसके बाद तो हम यही कह सकते हैं कि अच्छा हुआ जो महाराज सरगुजा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री नहीं बने। यदि वे मुख्यमंत्री बन जाते तो प्रदेश के सरकारी अस्पतालों जैसा हाल पूरे प्रदेश का बन सकता था। पता नहीं महाराज सरगुजा को यह सब मालूम है या नहीं कि बिलासपुर के सरकारी अस्पताल, अब निजी नर्सिंग होम के संचालकों के लिए “मरीजों का बाजार” मात्र बन कर रह गए हैं। सिम्स और जिला अस्पताल सहित सभी सामुदायिक केंद्रों में गांव शहर से मरीज पहुंचते हैं। और प्रयागराज के पण्डों की तरह निजी नर्सिंग होम के कुछ बदनाम शुदा संचालक और उनके दलाल, इन मरीजों मे से अपने पसंदीदा मरीजों को छांटकर यहां से ठीक उसी तरह अपने नर्सिंग होम में ले जाते हैं। जैसे प्रयागराज के पंडे, स्टेशन और बस स्टैंड से क्रिया कर्म क्रिया कर्म करने के लिए पहुचने वाले जजमानों को खींचकर अपने पंडों के यहां ले जाते हैं। और फिर वहां उन्हें कसाई की तरह रेंता जाता है। अब महाराजा सरगुजा की रहनुमाई में आज के सिम्स अस्पताल और वहां भर्ती मरीजों की जो दुर्दशा हो रही है। उसे देखकर यही लगता है। अच्छा हुआ जो श्री टीएस सिंहदेव को इस प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अगर ऐसा हो जाता तो सिम्स समेत पूरे प्रदेश के छोटे बड़े अस्पतालों की दुर्दशा की तरह हमारे राज्य के सभी विभागों का हाल भी ऐसा ही बर्बाद हो सकता था।

जरा सोचिए कि नौटप्पा के दौरान 23 मई को सिम्स अस्पताल में मरीजों के लिए ना तो दवाएं हैं। और ना ही चिंता करने वाले डॉक्टर..! और तो और भीषण गर्मी से बचाने के लिए पंखों तक की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में धन्यवाद है कोनी सेंदरी के श्री सर्वेश्वरी समूह को जो उन्होंने सिम्स में भर्ती मरीजों की चिंता कर उन्हें 200 हस्त संचालित पंखे प्रदान करने की दरियादिली दिखाई। जिससे इस भीषण गर्मी के समय उन्हें किसी तरह कुछ तो राहत मिले। सर्वेश्वरी समूह की इस दरियादिली के लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। लेकिन करोड़ों करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी सिम्स में भर्ती होने वाले मरीज, सस्ती दवाओं और ठंडी हवाओं के लिए नौतपा में भी तरसते रहें… यह स्वास्थ्य विभाग और उसके मुखिया के लिए डुब मरने जैसी ही बात ही कही जाएगी। भगवान बचाए ऐसे स्वास्थ्य विभाग और उसके स्वनामधन्य मंत्री और महाराजा से।

वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत कोन्हेर की फेसबुक वाल से साभार