खाद-बीज की मात्रा भी लगेगी कम

बिलासपुर। धान की खेती में बढ़ती लागत से परेशान किसानों के लिए खुशखबरी। श्री पद्धति से करें पौधों की रोपाई और छुटकारा पाएं, खाद- बीज और ऐसे जरूरी काम पर होने वाले मनमाना खर्च से, जो बजट बिगाड़ती हैं।

खरीफ सत्र में ली जाने वाली धान की खेती, सबसे ज्यादा रकबे में ली जाती है । बीते कुछ साल से यह फसल परेशानी बढ़ा रही है क्योंकि खाद-बीज की कीमत लगातार बढ़ रही है। दवाएं तो वैसे भी हर बरस तेज होती ही है लेकिन इस बार डीजल ने जैसे तेवर दिखाए हैं, उसके बाद कृषि क्षेत्र लगभग धराशायी हो चुका है। तकनीक ने काफी हद तक किसानों को संभाला हुआ है। इस बीच नई विधि किसानों के बीच पहुंच रही है। “श्री पद्धति” के नाम से जानी जा रही इस तकनीक के उपयोग से ना केवल खाद-बीज पर होने वाले बेहिसाब खर्चों से बचा जा सकेगा बल्कि सिंचाई पानी की भी जरूरत बहुत कम पड़ेगी ।


जानिए श्री पद्धति को

श्री पद्धति, रोपाई की ऐसी विधि है जिसमें पौधों की संख्या और दूरी के अपने मानक हैं। इसके मुताबिक 14 दिन की ही उम्र वाले पौधों का रोपण अनिवार्य है। दो पौधों और दो कतार के बीच अंतर 25 सेंटीमीटर तक का होना जरूरी होगा। सामान्य फसल की अपेक्षा, इस विधि से ली गई फसल में पानी की मात्रा उतनी ही रखनी होगी, जितने में नमी बनी रहे। खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक और रासायनिक विधि अपनाई जा सकती है।


लागत ऐसे होगी कम

श्री पद्धति के तहत रोपाई के लिए मात्र एक-एक पौधों की ही जरूरत पड़ती है । इसलिए बीज की मात्रा प्रति एकड़ 2 से 4 किलो ही लगने की जानकारी दी जा रही है। कम पौधे लगाने से ज्यादा कंसे निकलेंगे, याने ज्यादा बालियां और ज्यादा उत्पादन। पानी की मात्रा केवल नमी के ही लायक, रखने से सिंचाई की जरूरत कम होगी।


होंगे यह लाभ

केवल एक-एक पौधों का रोपण, बीज पर होने वाले खर्च से बचाएगा। पानी की मानक मात्रा तय होने से सिंचाई पानी के लिए पंप का सहारा लेने से छूटकारा मिलेगा। एक- एक पौधों का रोपण करने से ज्यादा कंसे निकलेंगे। इससे ज्यादा बलियां याने ज्यादा उत्पादन के रूप में लाभ हासिल किया जा सकेगा। इस तरह नई विधि, निश्चित ही लाभदायक साबित होगी।


धान की खेती में बढ़ती लागत से परेशान किसानों के लिए श्री विधि निश्चित ही वरदान बनेगी। पौधों की उम्र, संख्या और दूरी के मानक का पालन करने पर निश्चित ही लाभ मिलेगा।

  • डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड प्रोफेसर,( एग्रोनॉमी), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर